राहुल और विजय अंधेरी रात में मुश्किल से कदम बढा़ रहे थे, एक तो पहाड़ और फिर शायद कुछ देर पहले ही बारिश हो चुकी थी तो फिसलन भी काफी थी ।
राहुल रह रह कर विजय पर खीझ रहा था. कि मैंने मना किया था इस मौसम में पहाड़ पर जाना ठीक नहीं है पर तुम नहीं माने अब देखो क्या हालत हो रही है… चलना मुश्किल है।
विजय उसे समझाते हुए कह रहा था,चिन्ता न करो हम एक घंटे में घर पहुँच जाएंगे ।
राहुल भुनभुनाता हुआ कदम बढ़ा रहा था,चलते चलते उन्हें काफी देर हो गयी थी फिर भी दूर दूर तक कहीं बस्ती का नामो निशान भी न था।
लगभग दो घंटों से ज्यादा हो गया था पर आबादी तो दूर ,कोई आहट तक नहीं थी आसपास ।
अब तो विजय को भी घबराहट होने लगी थी पर कुछ बोल नहीं पा रहा था ।विजय को लग रहा था शायद वो रास्ता भूल गये हैं ये बात वो राहुल को कह भी नहीं सकता था अगर कहता तो राहुल क्या करता,ये सोच कर चुपचाप चलता जा रहा था ।
अचानक राहुल ने उसकी बाँह पकड़ कर कहा,”देख विजय उधर रोशनी दिख रही है वहाँ हमें कोई जरूर मिलेगा ,चल उधर चलते हैं ।”
रोशनी देखकर विजय को बेहद खुशी हुई उसकी जान में जान आई उसने सोचा अब वो अपने गाँव का रास्ता भी उससे पूछ लेगा ।
तेज तेज चलते हुए वे उस जगह पहुँचे जहाँ से रोशनी आ रही थी वो एक छोटी सी चाय की दुकान थी चाय वाला चाय बना रहा था ।
विजय ने उससे अपने गाँव का रास्ता पूछा तो चाय उनकी तरफ बढ़ाते हुए उसने कहा,इधर पास से ही एक चट्टान के पीछे एक छोटा रास्ता है जो उन्हें आधे घंटे में ही उनके गाँव पहुँचा देगा पर रास्ता थोड़ा ऊबड़खाबड़ है ।
राहुल ने कहा ,ठीक है हम इधर से ही जाएंगे, विजय ने कहा ,इधर से कोई राह उसे नहीं पता है ,तो हम पुराने रास्ते से ही जाएंगे …। पर राहुल ने कहा वो छोटे रास्ते से ही जायेगा और वो तेजी से चट्टान के पीछे गायब हो गया ।
जब तीन घंटों बाद विजय घर पहुँचा तो उसने देखा राहुल घर पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था ।
विजय को देख कर राहुल बोला अगर वो उसके साथ आता तो दो घंटे पहले आ चुका होता पर विजय तुम तो डर गये थे।
विजय को लगा राहुल सही कह रहा है अगर उसके साथ होता तो वो भी कब का घर आ चुका होता ।
अगले शाम को विजय अकेला ही उस चाय की दुकान पर पहुँचा और चाय वाले से पूछ कर चट्टान वाले रास्ते से घर की तरफ चला …थोड़ी दूर आगे जाकर उसने देखा राहुल एक पेड़ के नीचे बैठा है और काफी थका थका लग रहा है …।
विजय उसके पास जाकर बोला, “तुम्हें भी आना था तो साथ ही आ जाते।”
राहुल ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा और बोला, कहाँ से आ जाते मैं तो रात से यहीं हूँ कब से यहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा हूँ पर घूम फिर के यहीं आ जाता हूँ …।
ये क्या बोल रहे हो तुम, रात को जब मैं घर पहुँचा,तो तुम घर पर ही थे,मजा़क की भी हद होती है ।
राहुल बोला “मैं मजा़क नहीं कर रहा हूँ ,मैं तो घर पहुँचा ही नहीं ।”
“देखो, ऐसी बातें करके मुझे डराओ मत ,तुम क्या सोचते हो मैं डर जाऊँगा …”विजय ने एक सांस में कहा।
मैं तुम्हें क्यों डराऊँगा। ठीक है चलो घर चलते हैं…।
हाँ ,चलो …।
विजय राहुल साथ चल दिये।
बहुत देर तक दोनों भटकते रहे पर उन्हें घर का रास्ता नहीं मिला ।
विजय के मन में धीरे-धीरे राहुल की बात का भरोसा होने लगा और अब तो रात भी हो रही थी ,अनजाना भय उसे घेरने लगा था वह समझ गया था ,राहुल सही कह रहा था ।
वह सोच रहा था अगर राहुल रात से यहाँ था तो घर पर राहुल की जगह कौन था और अब उसकी जगह कौन होगा….???