तुम मेरे सामने न आया करो.
तुम्हें देख कर दिल से बद्दुआ निकलती है
और कहते हैं
दिल से निकली बद्दुआ
पुर-असर होती है…
कभी प्यार से लबरेज़ था
दिल मेरा
धड़कता तुम्हारे लिए,पर
तुम्हारा जिक्र भी अब दुख देता है,मुझे…
जिस प्यार पर गुमान था
वही,अब चुभता है,
टूटे हुए काँच की किर्चों सा
कहते हैं
जो एक बार भरोसा तोड़े
उसका विश्वास नहीं करना चाहिए…
तुम्हारे प्यार में पागल मैंने
बार-बार तुम पर एतबार किया
और देखो! आज मैं एकदम,
तन्हा खड़ी हूँ,
मौसम बदलते हैं,
मेरे आँगन वही हैं
झुलसते दिन और तपती रातें
कुछ भी नहीं बदला यहाँ ,
शायद बदलेगा भी नहीं,
कौन है जो उजड़े हुऐ चमन को
आशियाना बनाएगा
सांसों की जगह निकलती हैं
दिल से आहें,और आती है
बद्दुआ तुम्हारे लिए…
इसीलिए कहती हूँ,
तुम मेरे सामने न आया करो
क्योंकि दिल से निकली बद्दुआ,
पुर -असर होती है ….।।।