बेचैन बहुत है,दिल
निढाल होकर
पड़ जाना चाहता हूँ
किसी एकान्त में,
खो जाना चाहता हूँ
जंगल में पहाड़ों में
खोज न सके कोई जहाँ…
थक गया हूँ ,
बोझ उठाए जीवन का
सो जाना चाहता हूँ…।
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बेचैन बहुत है,दिल
निढाल होकर
पड़ जाना चाहता हूँ
किसी एकान्त में,
खो जाना चाहता हूँ
जंगल में पहाड़ों में
खोज न सके कोई जहाँ…
थक गया हूँ ,
बोझ उठाए जीवन का
सो जाना चाहता हूँ…।
इतना सैड कविता पढ़कर लगता है कल्पना है कि हकीकत।
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बहुत शुक्रिया
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