थकी हुई लड़की सो रही है,
सपनों में खोई मुस्कराती है
जिद करती है माँ से,
लाड़ से बहलाती है माँ
बच्ची रूठ गयी है,माँ से।
पिता से शिकायत करेगी
पिता उसे गोद में लेकर उछालते हैं
हँस रही है,खिलखिला रही है
बहुत-बहुत खुश है।
सपना टूटता है
लड़की सोई है,अपने चार भाई बहनों के साथ,
चिल्ला रही है माँ,
कहाँ मर गयी,सुनती नहीं है।
इतनी बड़ी धींगड़ी हो गयी है।
दूसरे घरों की इत्ती बड़ी लड़कियाँ पूरा-पूरा घर सँभालती हैं
और ये महारानी अभी तक सो रहीं हैं
लड़की उठती है,
जूठे बरतन उठाती है,धोने के लिए
तभी हाथ से छूटता है गिलास
झनझनाता हुआ गिरता है
तभी घर आए पिता के पास जाकर रुकताहै
घूर कर देखते लड़की को,
माँ से कहते हैं,
अक्ल नहीं सिखाई लड़की को।
माँ चिल्लाती है ।
इत्ती बड़ी धींगड़ी हो गयी है,
दूसरे घरों की लड़कियाँ…….।
सच्चाई दिखाती कविता है. बधाई !!!
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Thanks😊
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आपकी कविता में जान है। लगता है सच्ची घटना हो।
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Thanks for inspiring☺☺☺☺☺
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