खौफ़ न था ज़माने का,न डरते थे अपनी रुसवाई से ।
खून – ए- दिल हुआ है,तेरी बेवफाई से ।
मुद्दत हुई है नींद को आँखों में पनाह लिए
दिल के गुनाह की सजा़, अच्छी मिली है।
जानता था तू बावफा नहीं है ,फिर भी।
जिन्दगी से खेलने की मेरी हिमाकत तो देख ।
चाँदनी रातों में जैसे वादियों में खो जाना ,
कतरा-कतरा पिघल जाना, रेशा-रेशा बिखर जाना ।
Beautiful
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Thanks 😊
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बहुत खूब. आप सुंदर कविता लिखते है.
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आपकी तारीफ ऊर्जावान है ,शुक्रिया ।
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Wow…bahut hi sundar
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Thanks a lot
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Waaaah….
Very beautiful blog
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Thanks a lot
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