दुख की इतनी आदत हो गयी है
कि सुख से डर लगता है,
खुशियाँ रास नहीं आतीं
और प्रसन्नता चुभती है
दुख पहरेदार बन गया है
किसी को भी आने नहीं देता घर के भीतर
बड़ी वफा दारी से अपना कर्तव्य नि भाता आ रहा है
कहीं भी दरार नहीं है,ना ही कोई सुराख छोड़ा है
प्रवेश कर सके सुख कहीं से भी
पसार कर बैठा है अपने पाँव हर तरफ
सच्चा साथी बन कर…
उदासी भरी एक अच्छी कविता है. समय रुकता नहीँ है. बदलता रहता है. दुख सुख आते जाते रहते है. इसी का नाम जिंदगी है. 😊😊
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शुक्रिया, खूबसूरत प्रतिक्रिया। ☺
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