दुख की इतनी आदत हो गयी है
कि सुख से डर लगता है,
खुशियाँ रास नहीं आतीं
और प्रसन्नता चुभती है
दुख पहरेदार बन गया है
किसी को भी आने नहीं देता घर के भीतर
बड़ी वफा दारी से अपना कर्तव्य नि भाता आ रहा है
कहीं भी दरार नहीं है,ना ही कोई सुराख छोड़ा है
प्रवेश कर सके सुख कहीं से भी
पसार कर बैठा है अपने पाँव हर तरफ
सच्चा साथी बन कर ,
मेरा दुख।
always happy likhne ke liye achha he per mushkurate rahiye logo ko bhi sukun milta he 😊😊
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Thanks 😊😊😊😊😊
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Acha lga..
Ar lgega agr ap muskurate rhen…😄😄
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Thanks 😊😊😊😊😊
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आपकी कविता ने हमारे पहरेदार को थोड़ा सा खिसका दिया 🙂
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बहुत शुक्रिया…☺☺☺
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