तेरी यादों का पैरहन है, जो
रोज़ ओढ़ते हैं और बिछाते हैं ,
खो गयी हैं आहटें साँकल भी उदास है
खा़मोशियों के जंगल में हम ख़ुद को आजमाते हैं।
दीवारों से है दोस्ती अपनी
अपने ग़म उनको ही सुनाते हैं।
तेरी यादों का पैरहन है, जो
रोज़ ओढ़ते हैं और बिछाते हैं ,
खो गयी हैं आहटें साँकल भी उदास है
खा़मोशियों के जंगल में हम ख़ुद को आजमाते हैं।
दीवारों से है दोस्ती अपनी
अपने ग़म उनको ही सुनाते हैं।