इस आग और पानी की रात में, बिछड़ना।
वो भी जब जीवन में,
प्रेम नया-नया हो
अतृप्ति और सतत् कामना के
इन क्षणों में, विछोह…
जीवन का यथार्थ
जीने का माध्यम ही छीने लिए जाता है।
परम आसक्ति के साथ- साथ
हमारी आत्माऐं एकाकार हों
आँसुओं का साथ
इस विदा की घड़ी में
क्या कहूँ क्या करूँ
प्रियतम की स्मृति
रोम- रोम से होकर
आँखों से बरसती है
और कण-कण में व्याप्त हो जाती है।