वही रहगुज़र थी वे ही दरख्तों के साए थे
जहाँ तेरी हथेलियों पर मैंने मेंहदी के फूल खिलाऐ थे
गुज़रा हूँ आज फिर उन्हीं राहों से मैं
भूली-बिसरी कहानियां हैं, और अपने वजूद के साए हैं
खुश्क हैं आँखें, आज भी दिल भारी है
आँसुओं से लिखे थे हमने जो ख़त
अब गर्द -ओ-गुबार के जाए हैं
तू कहाँ ख़बर नहीं मुझ को ,अपना भी कुछ पता नहीं फिर रहा हूँ दर-ब-दर,उड़ा ले गयी है हवा जिसेमैं वो वऱक हूँ किसी के दिल की किताब का ।।।