और फिर तुम यूँ ही उठ कर चल दिये
रहगुजर पर तुम्हारे कदमों के निशान भी न थे
सरे-शब ,सरे-राह तेरे मुन्तजि़र थे हम
शायद किसी भीगी सी सहर तुम आओगे
तेरे हसीं ख्यालों से दिल लवरेज है
अहदे-उल्फतकी हसरत में मुद्दतें गुज़रीं
और फिर तुम यूँ ही उठ कर चल दिये
रहगुजर पर तुम्हारे कदमों के निशान भी न थे
सरे-शब ,सरे-राह तेरे मुन्तजि़र थे हम
शायद किसी भीगी सी सहर तुम आओगे
तेरे हसीं ख्यालों से दिल लवरेज है
अहदे-उल्फतकी हसरत में मुद्दतें गुज़रीं
बहुत खूबसूरत।
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बहुत बहुत धन्यवाद…
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बहुत सुंदर कविता है
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद…
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