तारों की छाँव में,चाँदनी रात जब शबाब पर होती है
लगता है आहिस्ते से तुमने मेरा नाम लिया है
सर्द रातों को उतर जाती हूँ मैं उसी घाटी में
जहाँ हम मिला करते थे सबसे छुप कर
दरख्तों के साये में
आती है याद वो बरसात की रात
टीन की छत पे बारिश की बूंदों से बजता जलतरंग
उन लम्हों में कितने ख्व़ाब जगे थे
तुम भूले तो नहीं हो या भूल गये हो
या कि बदलते मौसम की मानिंद तुम भी बदल गये हो
👌👌👌👌
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Thank you so much😊😊😊😊😊
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Welcome…
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बहुत ही खूबसूरत रचना है।
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बहुत बहुत धन्यवाद 😊😊😊
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Bahut khub
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Thank you so much
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