मैं जानता हूँ वस्ल की रात लम्बी न होगी
तुम चल दोगे मुझे हिज्र की सौगात देकर
चश्मे-पुर आब हो तो क्या,
होश में न हम हो तो क्या
मेरा अहद है तेरी राहों को
अपने दिल के लहू से सजाऊंगा मैं
बहुत फख्र था अपनी मुहब्बत पे हमें
ये न जाना था, जिसे दिलोजान से चाहा
उसे ही न पाऊँगा ,मैं।
बहुत फख्र था अपनी मुहब्बत पे हमें
ये न जाना था, जिसे दिलोजान से चाहा
उसे ही न पाऊँगा ,मैं—क्या बात बहुत उम्दा।👌👌👌
LikeLiked by 1 person
आपका बहुत बहुत धन्यवाद 😊😊😊😊😊
LikeLike