सदियों से मुन्तज़िर हैं,लम्हें हैं इन्तज़ार के
फ़िज़ाओं में घुली है तेरी यादों की महक
आये हैं मौसम बहार के,तेरे दीदार के
चश्मे-तर था मगर मेरा दामन दाग़दार न था
तू मेरी मुहब्बत तो क्या मेरी इक नज़र का भी रवादार न था
तू मेरी मुहब्बत में गिरफ़्तार हो,मैं बेवफ़ाई करूँ
जानता हूँ ये गुनाह है मगर इक बार तो करूँ
न वो मैं हूँ न वो तुम हो न वो क़ाफ़िले बहार के
मरे हुए ख़्वाब हैं सूखे हुये कुछ फूल है मज़ार के
तुमसे निभाने की कोई सूरत न हुई
हमसे तिजारत न हुई,तुमसे मुहब्बत न हुई।।
बेहद खूबसूरत।
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Thank you so much 😊
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You are most welcome🌹🌹🌹
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😊😊😊😊😊
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