ये कैसी अजनबी राहें है
जो मुझे तुम तक नहीं आने देतीं
ख़ामोशी के आलम में
दिल के साज़ का एक-एक तार जागता है
कहाँ से लाऊँ वो सदाएं
जो तुम्हें मुझ तक ले आऐं
ये कैसा शाप है मुझ पर
जो मेरे ख़्यालों में है,वही मुझसे बेख्याल है
वो राग जो लेते कभी दिल में अँगड़ाईयां
उदास हैं मेरे दिल की तरह
बहार के मौसम में
पतझड़ उतरा है मुझ पर ।
Bhut sundr gadya kavya
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद 😊😊😊😊😊
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khubsurat kavita……bahut khub.
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Thank you so much 😊 😊😊😊😊
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Waaaaah…👌
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Thank you so much 😊
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