ग़ुस्ताख़ नज़र तेरी दिल में उतर गई
कुछ कह न सके कहीं खो से गये हम
जबां खोली थी ज़रा हमने
कुछ कहने की आरज़ू थी
वो तेरी शोख़ -निगाहें
मुज्तरिब से होके रह गये
अल्ताफ़ हुआ उनका,होंठों पे तबस्सुम था
नज़रों से मिली नज़रें
दिल मेरा उनका घर हो गया
ये खाम-ख्याली भी दिल से निकल गयी
देंगे न किसी को दिल अपना कभी हम
वो इरादा जाने किधर गया।
Again a brilliant work
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Thank you so much 😊 😊😊😊😊
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Nice one
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Thank you so much 😊 😊😊😊😊
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