तेरे अहद पर मुझे एतबार नहीं
तर्क कर दिये हैं ताल्लुक़ सभी
मुझे अब तेरा भी इन्तज़ार नहीं
वो रहगुज़र जो दिल से होकर गुज़रती थी
रूह जो तेरे इश्क़ में सितम सहती थी
सुनसान रातें औ बोझिल सी फ़िज़ा में
मैं अब तेरा ग़म ख्वार नहीं
तेरे वादे मुझे एतबार नहीं ।