ठग ‘श्रीपान्थ का लिखा उपन्यास है जिसमें ठगों का जीवन उनके द्वारा लूटने का तरीक़ा ,चाल-चलन ,आचार व्यवहार के बारे में बड़ी सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है।
धर्म से वे भले ही किसी सम्प्रदाय के हो उनका काम ठगी ही था ।कहीं वे फांसुडे़ कहे जाते थे,कहीं फाँसीगीर कहीं आरीतुलुकर कहीं तन्ताकोलेरु ।
वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान उनमें एकता थी
वे सब केवल ठग थे और सिर्फ़ देवी भवानी या काली को
मानते थे ।
ये ठग बेहद क्रूर होते थे ,व्यापारियों के साथ,दूर जाने वाले क़ाफ़िलों के साथ मिल जाते और राह में मौक़ा मिलते ही उन्हें लूट लेते तथा उन सबकी नृशंस तरीक़े से हत्या कर देते ,लाशें इस तरह ग़ायब कर देते कि पता ही नहीं चलता कोई क़ाफ़िला या व्यापारियों का दल उधर से गुज़रा भी था ।
ठगों की भाषा भी अलग ही थी रामसी भाषा ।
चुका देना या थिबाई देना यानि कि फुसला कर उसे बैठा दो ,पान का रूमाल लाना मतलब रूमाल ठीक कर लो
इसके बाद ,तम्बाकू लाओ यानि कि मारना है।
सोते हुये आदमी को मारना मना था ,मारने से पहले उसे चिल्ला कर जगा देते थे ।
ये ठग दुरदान्त हत्यारे थे ।उन्हें विश्वास था कि माँ भवानी उनके हर कार्य में उनका साथ देती हैं और उन पर माँ का आशीर्वाद भी है ।
इन ठगों से मुक्ति के बारे में विलियम हेनरी स्लीमैन ने कठोर क़दम उठाये,उन्होंने न सिर्फ़ ठगों का उन्मूलन किया बल्कि उनका भविष्य भी सुधारा ।नर्मदा के झाँसी घाट से लेकर गंगा तट के मिर्ज़ापुर तक के छियासी मील के रास्ते के दोनों तरफ़ जितने भी पेड़ हैं सब ठगों द्वारा लगाये गये हैं।स्लीमैन ने ठगों को मानव -धर्म सिखाया ,उन्हें समाज में स्थान दिलाया ।
ठगी से सम्बन्धित कई पुस्तकें भी स्लीमैन ने लिखी हैं । ठगों के बारे में लिखी कुछ चर्चित पुस्तकें जेम्स हटन की “ए पॉपुलर अकाउण्ट आफ द ठग्स एंड डकायट्स’ -“सम रिकार्ड्स आफ क्राइम “ जनरल हरवे तथा स्लीमैन के पोते कर्नल सर जेम्स स्लीमैन की ठग ,आर ए मिलियन मर्डरस हैं ।