तुम्हारी आँखें कुछ भी कहने से रोक देती हैं ,मुझे
तुम्हारा अन्दाज़ भुला देता है,मुझे
मेरे शब्द बग़ावत करने लगते हैं
तुम्हारे सामने बेबस हो जाता हूँ ,मैं
ख़ामोशियों की भी ज़ुबान होती है
कभी तुम सुन सको शायद
उन शब्दों को , जो मैं कह न सकूँ तुमसे
परतुम सुन लो वो अहसास मेरे
जिन्हें मैं शब्दों का लिबास न पहना सकूँ
क्योंकि प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती ।