इक इक करते दिन गुज़रते रहे
तुम्हारे मिलने का मौसम नहीं आया शायद
उम्मीद ने ख़्वाहिशों को परवान चढ़ाया
हक़ीक़त में मेरा पैग़ाम नहीं पहुँचा शायद
मैंने तो ख़त में अहसास पिरोये थे
तुमने अल्फ़ाज़ भी समझे नहीं शायद
फ़क़त तेरे दीदार को गुज़रे तेरी गली से हम
तुझसे मुलाक़ात मुक़द्दर में नहीं है शायद ।
Waah 👌👌
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Thanks 😊😊😊😊
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Bahut khub…..Lajwab hai.
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद😊😊😊
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