पता नहीं क्यों तुम याद आते बहुत हो।
तन्हाई की मैं क्या कहूँ ,
महफ़िल में भी अकेला कर जाते बहुत हो।
मैं ज़ाहिर कर नहीं सकता कभी अहसास मेरे,
तुम आँखों से कह जाते बहुत हो।
तुम्हारा नाम था मेरी इबादत में शामिल,
इश्क़ है मेरा ऐसा जहाँ एहतियात बहुत हो।
तुमसे करूँ मैं मिलने का वादा,
औरतुम्हें शाम का इन्तज़ार बहुत हो।
तेरा मिलना माना आसान नहीं पर,
तू गुज़र जाये क़रीब से ऐसे इत्तफ़ाक़ बहुत हो
Bahut sundar 👏👏
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Thank you so much 😊 😊😊😊
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तन्हा हूं मैं आज भी इस महफ़िल में
उनके कदमों की आहट से शायद रौनक आ जाए
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वाह क्या बात है 👍👍👍
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