तेरे नाम से जो लगावट सी लगती है
तू न समझे तो क्या
मुझे तो मुहब्बत ही लगती है
चले आओ एक अहसान ही कर दो
मेरे नाम अपनी इक शाम ही कर दो ।
अहसास -ए-ग़म से मैं किनारा कर लूँ
जो तुम मुहब्बत का एहतराम कर लो
मर जाऊँगा यक़ीनन ख़ुशी से मैं
मिलने का वादा जो एक शाम कर दो