ख़ुद मुख़्तार हूँ मैं अपनी बर्बादी का
महज़ तुमने तो मुस्करा के बात की थी
खामखां तुम उठ के चल दिये
हमने तो महज़ अर्ज़ ए तमन्ना की थी
बेकसों की आरजुओं का ज़िक्र भी क्या
कब किसने इस बात की फिकर की थी
इस दिल पे बस किसका चला है
मैंने तो बस इक छोटी सी इल्तजा की थी
मुहब्बत में दिलों का क्या फ़र्क़
न समझने की भूल हमने कर ली थी