ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ यूँ न कुरेद मुझे
लहू है मेरे दिल का
ज़ख़्मों से बह रहा है
वो ज़ख़्म जो तेरी ख़ातिर मैंने है उठाये
क़तरा क़तरा है
मेरी पाक मुहब्बत का
इतना तो असर हो
मेरी वफाओं में
कभी याद आऊँ तो
शरम से झुक जाये
सर तेरा
मेरी बरबादियों का ग़म
नहीं है मुझे
ग़म तो इस बात का है
तू भी शामिल था
मुझे बरबाद करने वालों में
Wah! Kya baath hein Angira, aapki ghamon mein bhi ithni khoobsurathi hein jitni aapki dil mein aapki tutti hui mohabbath khi dard hein. Bahuth badiya thi aapki kavita
LikeLiked by 1 person
आपका बहुत बहुत धन्यवाद😊😊😊😊😊
LikeLiked by 1 person
Mention not please.
LikeLiked by 1 person
😊😊😊
LikeLiked by 1 person