मैं अगर इक ग़ज़ल भेजूँ तुम्हें
तो तोहमत है मुझ पर इश्क की
जो किताब दूँ ग़ज़लों की
तो बुरा मानते नहीं लोग
गुज़रूँ तेरी गली से
तो तोहमत है मुझ पर बदकारी की
और गुज़रे मेरा जनाजा
तो फूल फेंकते है लोग
तेरे दीदार की हसरत रखूँ
तो बेअदब मानते है लोग
नज़रें झुका के निकलूँ
तो सही मानते हैं लोग
मुश्किल है तेरी गलियाँ
है इश्क कहाँ आसान
पैग़ाम ए मुहब्बत को
कहाँ मानते हैं लोग
बाज आये मेरे दिल की हसरतें
तो इश्क भी क्या है
अंजामे मुहब्बत को
कहाँ जानते है लोग ।
Kya baat!!!
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Thank you so much 😊😊😊😊😊
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Kya bat h… 😊😊❤❤
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Thank you so much 😊😊😊😊😊
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Aafrin
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Thank you so much 😊
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Khubsurat kavita
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Thank you so much 😊
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So beautiful 😊😊😊
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Thank you so much 😊
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Bhut ase
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Thank you so much 😊
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