किस क़दर कशिश है इस तन्हाई में
शायद मुझे तुमसे मुहब्बत हो गई है
इज़हार ए मुहब्बत की कोशिश में
बात आई गई हो गयी है
मैं कहाँ हूँ किधर हूँ कुछ अपनी ख़बर नहीं
तन्हाईयों में रहने की आदत हो गयी है
ख़लिश है किस क़दर दिल में क्या कहूँ
सबर की फिर भी आदत हो गयी है
समझाने से दिल कहाँ संभलता है
बहलाने की फिर भी आदत हो गयी है
तुमको देखे बिना क़रार नहीं
बेक़रारी की मेरी फ़ितरत हो गयी है
तेरे दिल का हाल मैं जानता नहीं
ज़िन्दगी में कितनी मुसीबत हो गयी है ।
वाह क्या खूब कहा।बेहतरीन पंक्तियाँ।👌👌
समझाने से दिल कहाँ संभलता है
बहलाने की फिर भी आदत हो गयी है
तुमको देखे बिना क़रार नहीं
बेक़रारी की मेरी फ़ितरत हो गयी है
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया😊😊😊🙏🙏
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Need not getting nervous 🤣🤣
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😁😁😁 Thank you so much 😊
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