मालूम न था गुज़रोगे दिल की रहगुज़र से
वरना दहलीज़ पे हमने चिराग़ जलाये होते
हवाओं से हमने पैग़ाम दिया होता
आँखों में हज़ारों ख़्वाब सजाये होते
किस तरह से तसल्ली दी दिल को अपने
इन्तज़ार ने तेरे वरना कितने सितम ढाये होते
मुकम्मल हुये तुझसे मिलने के बाद हम
गर्दिशों में कितना बरबाद हुये होते
नाम लेकर जो पुकारा तुमने मेरा
दिल को संभाला किस तरह हमने
वरना आँसू ही छलक आये होते ।
धन्यवाद अंगिरा
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😊😊😊😊😊
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Kya baat
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Thank you so much 😊
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Welcome Angira
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😊😊😊😊😊
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It has all the feel … Great work!
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Thank you so much 😊
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