कभी मिलना हो तो
एेसे न मिलना
कि इक अजनबी से मुलाक़ात हुई
चन्द लम्हे जिन्दगी से लेआना
फिर वक़्त मिले न मिले
जो भी शिकवे हो,शिकायत हो
मुहब्बत हो या अदावत हो
तन्हाई में गर लफ़्ज़ घायल भी हो तो
ग़ैरों की महफ़िल में चर्चा नहीं होगा
वो प्यार जो तुम भूल गये हो
सरेआम रुसवा नहीं होगा
अजनबी बन के न मिलना मुझको!