मौन होकर जब कोई प्रार्थना करती हूँ मैं
बंद आँखों में तुम्हारा चेहरा झाँकता है
और मेरी प्रार्थना, छिन्न भिन्न हो जाती है
निकल जाती हूँ ,उन सूनी पगडंडियों पर
फिरभी .तुम्हारी यादों से ,तन्हा नहीं होती
इन घने पेड़ों की छांव में लिख जाती हैं
हवायें ,मस्ती में धूप छांव से लम्हे मेरे दिल पर
सूनी राहों पर सूनी निगाहें
दर्द मुक़द्दर हो तो ,कोई क्या करे
गुज़र गये लम्हे ,जो ढूँढता है मन उन्हीं को
नज़र लौटती है उदास ,हैरान, परेशान सी
वो क्यूँ नहीं लौटता,
जिसका दिल को सदियों से इन्तज़ार है।
दर्दभरी खूबसूरत कविता।
जानेवाले चले जाते हैं
और बस
इंतजार रह जाता है।
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Thank you so much 😊
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Beautiful piece mate ✔️💯
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Thank you so much 😊 😊😊
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Pleasure always for beautiful stuff mate
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