इश्क वो शै है जहाँ हौसले कम नहीं होते और भड़कते है शोले गर मुख़ालफ़त कम नहीं होते मुस्कुराते जाते हैं फिर भी ग़म के सिलसिले कम नहीं होते परेशां है कब से ये सोच के हम , क्यूँ उनकी यादों में हम नहीं होते
इश्क वो शै है जहाँ हौसले कम नहीं होते और भड़कते है शोले गर मुख़ालफ़त कम नहीं होते मुस्कुराते जाते हैं फिर भी ग़म के सिलसिले कम नहीं होते परेशां है कब से ये सोच के हम , क्यूँ उनकी यादों में हम नहीं होते