हिन्दुस्तान के उद्योग धन्धे नष्ट करने और उसे अपने कारख़ानों के तैयार माल का बाज़ार बनाने के लिये अंग्रेज़ पूँजीपतियों ने मशीनों और राजसत्ता दोनों का इस्तेमाल किया ।
उन्होंने भारत के तैयार माल पर शुल्क लगाया और लगभग २३५ प्रकार के माल पर बड़ी बेइन्साफी के साथ भारी शुल्क लगाया गया ,जिस से भारतीय माल विलायती माल से टक्कर न लेसके ,यह शुल्क प्रति वर्ष बढ़ा कर भारतीय उद्योग धन्धे नष्ट किये जा रहे थे ।
३,३०,४२६ औरतें सिर्फ़ सूत कात कर जीविका चलाती थी ,दिन में कुछ घंटे काम करके वे साल में १०,८१ ,००५ रुपये का लाभ कर लेती थी ।अंग्रेज़ों की वजह से उनकी कमाई का साधन ख़त्म हो गया ।
फ़तुहा नवादा,गया टसर उद्योग के लिये प्रसिद्ध थे और काग़ज़ इत्र तेल नमक के उद्योग भी मुनाफ़ा करते थे ।
भागलपुर में बारह हज़ार बीघे में कपास की खेती होती थी दीनाजपुर में ३९,००० हज़ार बीघे में पटसन ,
२४,००० बीघे में कपास ,२४,००० बीघे में ईख ,१,५०० बीघे में तम्बाकू ,१५,००० बीघे में नील की खेती होती थी।
रेशम का व्यवसाय करने वाले पाँच सौ घर साल में १,२०,००० मुनाफ़ा लेते थे बुनकर साल में १६,७४,००० का कपड़ा तैयार करते थे ।पूर्णियाँ जिले की औरतें हर साल लगभग तीन लाख रूपये कपास ख़रीद कर सूत तैयार करती थी और बाजार में तेरह लाख रूपये का बेचती थी ।
इन तथ्यों से पता चलता है भारतीय उद्योग धन्धे कितना आगे थे ।
परन्तु अंग्रेज़ों को हिन्दुस्तानी जहाज़ों का माल लेकर दूसरे देशों में जाना रास न आया ,इसलिये नेविगेशन एक्ट बनाया गया जिसके अनुसार हिन्दुस्तान का किसी भी देश के साथ सीधा व्यापार करने का अधिकार ख़त्म कर दिया गया ।
इस प्रकार भारतीय उद्योग नष्ट होने लगा और ब्रिटेन के उद्योग फलने फूलने लगे ।
अठारहवीं सदी के आख़री सालों में और उन्नीसवीं सदी के शुरू में नील की खेती अंग्रेज़ों की लूट का मुख्य साधन थी ।हिन्दुस्तान से नील फ़्रान्स इटली अमेरिका मिस्र फ़ारस आदि देशों में जाता था नील के व्यापार ढेरों मुनाफ़ा देखकर कंपनी ने निलहे साहबों का उदय हुआ जो शोषण और अत्याचार के लिये इतिहास प्रसिद्ध हैं, निलहे साहबों ने किसानों को ग़ुलाम बना दिया और उनकी मेहनत की कमाई से वे मालामाल होने लगे।
ब्रिटिश पूँजीपतियों के शोषण से हिन्दुस्तान में बारबार अकाल पड़ने लगे ,उन्नीसवीं सदी में सात बार अकाल पड़ा इस अकाल में माना जाता १५ लाख आदमी मरे ।
भूखों मरते हिन्दुस्तान से अनाज ज़्यादा से ज़्यादा बाहर भेजा जाने लगा ,१८४५ में ८ लाख५८ हज़ार पौंड का १८५८ में ३८ लाख पौंड का ,१८७७ में ७९ लाख का १९०१ में ९३ लाख ,और१९१४ में १ करोड़ ९३ लाख पौंड का अनाज जिसमें गेंहू और चावल था बाहर भेजा गया ।
लूट का ये आलम था कि १९३१-३५ के समय में ३२० लाख औंस से ज़्यादा सोना ब्रिटेन ले जाया गया जिसकी क़ीमत २० करोड़ ३० लाख पौंड थी ,१९३१ से १९३७ के मध्य लगभग २४ करोड़ १० लाख पौंड का सोना ब्रिटिश साम्राज्य वादी भारत से ले गये ।
इन तथ्यों से पता चलता है ,कि ब्रिटेन ने भारत को औद्योगिक देश न बनाकर खेतिहर उपनिवेश बनाना चाहा ।इन लोगों ने भारत पर अधिकार जमा कर उसे हर तरह से लूटकर बरबाद किया ।तो क्या हिन्दुस्तानी जनता ने सब कुछ चुपचाप सह लिया ,नहीं ,समय समय पर जनता ने विरोध किया ।
जिससे अनेक विद्रोह का जन्म हुआ ,इतिहास प्रसिद्ध पहला विद्रोह ,सन्यासी विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।