ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई उद्योगों के साथ नमक उद्योग पर भी अपना हक़ जमा लिया ।भारत के उड़ीसा के बालासोर से लेकर बंगला देश के चटगाँव तक फैले समुद्र के किनारे नमक बनाया जाता था नमक बनाने वाले कारीगर मंलगी कहलाते थे ।
बंगाल में नमक १७९५ में ३०,२८,३४२ मन और १७९६ में २६,९९,२८६ बनाया गया था औसतन २८ लाख मन नमक हर वर्ष बनाया जाता था इसका आधा नमक मेदिनीपुर के हिजली और तमलुक में पैदा होता था ।
बंगाल के नवाब भी नमक को अच्छी आमदनी मानते थे । कंपनी के अंग्रेज़ कर्मचारी भी पलासी युद्ध की विजय के बाद नमक का बिना किसी शुल्क के व्यापार पर अपना हक़ मानते थे ।बक्सर के युद्ध के बाद क्लाइव ने समिति बनायी जिसका नाम एक्सक्लूसिव सोसायटी था ।जिसमें कंपनी के बड़े कर्मचारी ही हिस्सेदार हो सकते थे ।कंपनी केगोरे कर्मचारी व्यक्तिगत व्यापारी बन गये और गुमास्तो की सहायता से व्यापार करने लगे कंपनी के नये और छोटे कर्मचारियों के विरोध के कारण १७६८ में ये सोसायटी तोड़ दी गयी ,सोसायटी के टूटने के कारण नमक सस्ता हो गया तो कंपनी ने नमक पर ३० प्रतिशत
शुल्क लगा दिया ,नमक का ये व्यापार १७७२, तक चलता रहा ,इसके बाद कंपनी ने नमक के व्यापार पर पूरा नियंत्रण कर लिया ।
कंपनी ने नमक पर जो कर लगाया था उससे कंपनी की आमदनी बढ़ी लेकिन जनता को अपने लिये नमक ख़रीदना मुश्किल हो गया ।
हेनरी बेवरिज ने लिखा है कि नमक के उत्पादन के लिये भयंकर अत्याचार किये गये जिससे १८१८, में ३५०परिवार घर छोड़ कर भाग गये ।
२९ अप्रेल १८००, में वीरकुल बलाशय औरमिरगोधा परगने के सारे मलंगी वीरकुल के मंलगियो के साथ जुलूस बनाकर कांथी गये और कंपनी के अधिकारियों को आवेदन पत्र दिय जिसमें मज़दूरी बढ़ाने और बेगारी ख़त्म करने की माँग रखी गयी पर कोई लाभ न हुआ ।
१८०४ में प्रेमानंद सरकार ने कारीगरों को हड़ताल के लिये संगठित किया और जनवरी के अंत में विद्रोह की घोषणा की ।
उन्होंने कंपनी के एजेन्ट को अपनी माँगे पेश की ,एजेंट ने क्रोध में आकर प्रेमानंद को गिरफ़्तार कर लिया मंलगी इस बात पर बिगड़ गये ,और मुठभेड़ को तैयार हो गये ।
अंतत एजेन्ट को मानना पड़ा ,कि वह उनकी माँगे पूरी करेगा ।
Very well written 🙏🙏🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
Thank you so much 😊
LikeLike