१८५७ के विद्रोह में हिन्दू मुस्लिम एकता ने ब्रिटिश सरकार को चिन्तित कर दिया ब्रिटिश सरकार की बांटों और राज्य करो की नीति एक बार फिर काम आई और उन्होंने हिन्दू मुसलमानों के साथ यही नीति अपनाई ।
१८५७ के विद्रोह की असफलता से हिन्दू मुसलमानों की दिशायें अलग होनी शुरु हो गयी ।
मुसलमानों का उच्च वर्ग नहीं भूला कि उन्होंने ६०० साल तक हिन्दुओं पर शासन किया था और हिन्दूओं को भी याद था कि मुस्लिम शासकों ने ज़बरन उनका धर्म परिवर्तन करवाया मन्दिरों को नष्ट किया ।
कुछ राष्ट्र वादी मुस्लिम और हिन्दुओं के तमाम तर्कों और समझाने के बाद भी विभाजन के समर्थक अपनी ज़िद पर अड़े थे ।
६००सालों की मिश्रित सभ्यता के बाद हिन्दू मुस्लिम
अलग अलग धर्मों के साथ भाइयों की तरह मित्रों की तरह हर गाँव हर शहर में थे ,हर उत्सव विवाह में त्योहार में साथ रहने वाले क्यों विभाजन चाहते थे इसका उत्तर शायद किसी के पास नहीं है ।
मुहम्मद अली जिन्ना गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर राव तिलक का बेहद सम्मान करते थे तिलक का मुक़द्दमा भी जिन्ना ने लड़ा था गांधी जी और नेहरू जी के लिये जिन्ना कठोर भी हो जाते थे पर गोखले और तिलक के लिये उन्होंने कभी असम्मानदनक शब्दों का प्रयोग नहीं किया ।
साठ वर्ष की आयु में जिन्ना ने अलग मुस्लिम राष्ट्र के जन्म को अपने विचारों में मान्यता दी ।
विभाजन ने अखंड भारत के दो टुकड़े कर दिये ।
विभाजन के शिकार एक करोड़ साठ लाख लोग हुये अपना घर बार अपनी जगह छोड़ कर शरणार्थी की तरह भटकते फिरे ,लगभग पन्द्रह लाख लोग विभाजन की हिंसा काशिकार हुये ।
एक करोड़ बीस लाख हिन्दू दूसरे दर्जे के नागरिक बन कर रह गये मुसलमानों ने भी विभाजन की क़ीमत चुकाई ,असुरक्षा की भावना उनके अन्दर भी भर गयी उनके कई धार्मिक स्थल भारत में रह गये अजमेर शरीफ़
निज़ामुद्दीन आदि ।
विभाजन से क्या मिला इसका उत्तर विभाजन के समर्थकों के पास नहीं है ।
नेहरू जी ने विभाजन की त्रासदी के बाद भी अपना धैर्य और सन्तुलन बनाये रखा ,और भारत एक धर्म निरपेक्ष और प्रजा तान्त्रिक राष्ट्र बना जिसमें मुसलमानों को भी समान अधिकार मिले ।
Very well written 👍👍👍
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