नरसिंह वर्मन की मृत्यु के पश्चात (६६८ ई०) उसका बड़ा पुत्र महेन्द्र वर्मन द्वितीय सिंहासन पर बैठा महेन्द्र वर्मन को पल्लव साम्राज्य में सुख शान्ति बनाये रखने वाला शासक कहा जाता है वो ब्राह्मणों मन्दिरों तथा वैदिक विद्यालयों का संरक्षक था ।
महेन्द्र वर्मन द्वितीय के बाद परमेश्वर वरमन प्रथम राजा हुआ परमेश्वर वरमन प्रथम ने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वितीय को पराजित किया ।वह शिव का परम भक्त था ।उसने अनेक शिव मन्दिरों का निर्माण करवाया ।मामल्लपुरम का प्रसिद्ध गणेश मन्दिर इसी राजा द्वारा बनवाया गया था इसका शासनकाल (६९५ ई०) तक रहा ।
परमेश्वर वरमन की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र नरसिंह वर्मन द्वितीय राजा बना जिसका उपनाम राजसिंह था ।नरसिंह वरमन द्वितीय के शासन काल में पल्लव साम्राज्य की कीर्ति भारत के बाहर विदेशों तक फैल चुकी थी ।१००३ ई० में संकलित चीनी कोष त्यों फ़ू य्यान कुई से पता चलता है कि चीन के साथ नरसिंह वरमन द्वितीय के मैत्री पूर्ण संबंध थे ।उसका शासन काल ७२२ ई० तक रहा ।
महेन्द्र वरमन तृतीय ने पिता की मृत्यु के पश्चात सिंहासन प्राप्त किया परन्तु अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो गयी तत्पश्चात नरसिंह वरमन द्वितीय का कनिष्ठ पुत्र परमेश्वर वरमन द्वितीय ने राजसिंहासन सुशोभित किया परन्तु चालुक्य राजा से युद्ध में वह मारा गया और उसकी मृत्यु के बाद सिंह विष्णु वंश का अन्त हो गया ।
सिंह विष्णु के भाई भीमवरमन के वंशज नन्दिवरमन द्वितीय ने शासन संभाला उसने राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुरग की सहायता से लम्बी अवधि तक शासन किया ।
नन्दिवरमन के बाद उसका पुत्र दन्तिवरमन ने राज्य संभाला ,वह गुणी शासक था इसने भी दीर्घ काल तक शासन किया ।
नन्दिवरमन तृतीय दन्तिवरमन का उत्तराधिकारी हुआ पल्लव शासकों में इसे अंतिम पराक्रमी और सुयोग्य शासक माना जाता है ।
इसकी मृत्यु के बाद नृपतुंगवरमन राजा बना परन्तु सौतेले भाई अपराजित द्वारा हटा दिया गया।
अपराजित को पल्लव वंश का अंतिम महान शासक माना जाता है ।
इतिहास मेरा प्रिय विषय है …
ऐसे ही रोचक विषय पर जानकारी देते रहें …
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
✍️😎👍
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Thank you so much 😊
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अपना इतिहास बहुत ही गौरवशाली है जिसे पढ़ रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मगर अफशोष की वे सभी आपस मे ही टकराकर अपना वजूद नष्ट कर लिए।
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Very right …👍👍👍
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