वातापि के चालुक्य नरेश कीर्ति वर्मन को दन्ति दुर्ग ने परास्त कर राष्ट्र कूट वंश की स्थापना की ।
राष्ट्र कूट चन्द्र वंशी क्षत्रिय माने जाते हैं जिनकी राजधानी मान्यखेट थी , दन्ति दुर्ग प्रारम्भ में चालुक्यवंश के विक्रमादित्य द्वितीय का सामन्त था ।दन्ति दुर्ग ने चालुक्य राज्य की सुरक्षा के लिये अरब आक्रमण कारियों को पराजित किया था जिससे प्रसन्न होकर चालुक्य नरेश विक्रमादित्य ने उसे पृथ्वी वल्लभ की उपाधि से विभूषित किया था ।विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कीर्ति वरमन राजा बना तो दन्ति दुर्ग ने उसके ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया फलत: दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया जिसमें कीर्ति वर्मन पराजित हुआ । दन्ति दुर्ग ने उत्तरी महाराष्ट्र ,गुजरात और पास के अन्य प्रदेशों पर अधिकार कर लिया ।
दन्ति दुर्ग का युद्ध पल्लवों के साथ भी हुआ , परन्तु दन्ति दुर्ग ने पल्लवों के नन्दिवरमन से अपनी पुत्री का विवाह कर उनके साथ मैत्री सम्बंध स्थापित कर लिये ।
दन्ति दुर्ग की मृत्यु के बाद उसका चाचा कृष्ण प्रथम राजा बना , माना जाता है कि दन्ति दुर्ग निसंतान था । कृष्ण प्रथम पराक्रमी तथा कुशल शासक था । उसने मैसूर के गंगवाडी राज्य को जीतकर अथाह संपत्ति प्राप्त की ।
वेंगी के चालुक्यों पर भी उसने विजय प्राप्त की संधि स्वरूप वेंगी शासक ने अपनी पुत्री का विवाह कृष्ण प्रथम के छोटे पुत्र ध्रुव के साथ कर दिया ।
कृष्ण राष्ट्र कूट वंश का महान शासक था अपने साहस के बल पर उसने उत्तराधिकार में प्राप्त राज्य को विस्तार दिया । उसने काँची के पल्लवों को पराजित किया तथा चालुक्य वंश को समाप्त कर संपूर्ण कर्नाटक को अपने अधीन किया ।
कृष्ण प्रथम एक विजेता होने के साथ कला और साहित्य का भी संरक्षक था । एलोरा का प्रसिद्ध कैलास मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने ही करवाया था ।