अब राष्ट्र कूट नरेश ध्रुव ने उत्तर भारत के राज्यों पर विजय प्राप्ति हेतु प्रस्थान किया ।प्रतिहार नरेश वत्सराज ने कर्क द्वितीय ‘ जो ध्रुव के अधीन राष्ट्र कूट सामन्त के रूप में लाट राज्य का शासक था ‘ पर आक्रमण कर दिया ।यह ध्रुव के प्रतिकूल था ,अत: कर्क द्वितीय की सेना के साथ ध्रुव की सेना भी मिल गयी ।शक्तिशाली ध्रुव के समक्ष वत्सराज टिक न सका और बुरी तरह पराजित हुआ ।
प्रतिहारों पर विजय के पश्चात ध्रुव ने गौड़ राज्य के गौडाधिप धर्म पाल पर आक्रमण कर दिया ,धर्म पाल को ध्रुव ने आराम से हरा दिया ,पराजित धर्म पाल युद्ध क्षेत्र से भाग गया ।
अपनी राजधानी मान्यखेट से बहुत दूर निकल आने के कारण ध्रुव को सुरक्षा कारणों से वापस लौटना पड़ा ।
ध्रुव ने एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित कर लिया था ,उत्तर भारत में भी ध्रुव ने अपनी कीर्ति को ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया था ।
ध्रुव के चार पुत्र थे जिनमें से बड़े पुत्र की मृत्यु उसके जीवनकाल में हो गयी थी ,परन्तु बाक़ी तीनों पुत्र एक से बढ़कर एक योग्य थे । प्रान्त के शासक के रूप में सैन्य संगठन और प्रशासन में दक्ष हो गये थे ।
ध्रुव का स्नेह अपने पुत्र गोविंद तृतीय पर अधिक था इसलिये उसने अपने सामने ही गोविंद तृतीय का राज्याभिषेक करवा दिया ।
परन्तु उसका बड़ा पुत्र स्तम्भ स्वयं को राजगद्दी का हक़दार समझता था फलत: उसने अपने भाई गोविंद तृतीय के विरूद्ध विद्रोह कर दिया ।
स्तम्भ ने पल्लव पाण्डय चोल गंग केरल आन्ध्र वेंगी चालुक्य मौर्य गुर्जर कोसल अवन्ति सिंहल आदि राज्यों के राजाओं को अपने पक्ष मे कर लिया ।
इस विद्रोह की सूचना से गोविंद तृतीय ने गंगराज्य के उत्तराधिकारी शिवमार द्वितीय को जो उसका बंदी था मुक्त कर युद्ध में साथ देने को कहा ।
परन्तु शिवमार ने गोविंद को धोखा दिया और स्तम्भ के साथ मिल गया।
गोविन्द तृतीय ने अपने भाई इन्द्र और अन्य मित्रों को साथ लेकर गंगवाडी पर आक्रमण कर दिया और स्तम्भ और शिवमार को पराजित कर दिया ।
गोविन्द तृतीय ने अपने भाई स्तम्भ को तो क्षमा कर दिया और पुन: गंगवाडी का शासक बना दिया परन्तु धोखा देने वाले शिवमार को बन्दीगृह में डाल दिया ।
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Thank you so much 😊
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