अमोघ वर्ष के बाद उसका पुत्र कृष्ण द्वितीय राजसिंहासन पर आसीन हुआ ।उसके शासनकाल में भी वेंगी के चालुक्यों के साथ उसकी शत्रुता बनी रही ।
वेंगी शासक विजयादित्य ने राष्ट्र कूट राज्य के साथ देनेवाले नोलंबबाडी और गंगवाडी राज्यों पर आक्रमण कर दिया और नोलम्बबाडी के राजा का सिर युद्ध क्षेत्र मे काट लिया तत्पश्चात राष्ट्र कूट पर आक्रमण कर कृष्ण द्वितीय को पराजित किया ।
उधर मिहिरभोज प्रति हार शासक ने भी राष्ट्र कूटों से मालवा राज्य छीन लिया तथा राष्ट्र कूट राज्य के उत्तरी क्षेत्रों को भी अपने राज्य में मिला लिया ।
कृष्ण द्वितीय ने गुजरात के राष्ट्र कूट सामन्त कृष्णराज के साथ मिलकर प्रतिहारों पर आक्रमण किया और प्रतिहारों को पराजित कर मालवा और उज्जयिनी को अधिकृत कर लिया ।
कृष्ण द्वितीय का समकालीन चोल शासक आदित्य प्रथम था जिसने पल्लव राज्य को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था इससे चोल राज्य और राष्ट्र कूट राज्य की सीमायें मिलती थी इसलिये उसने चोल नरेश आदित्य के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर मैत्री सम्बन्ध बना लिये ।
आदित्य प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र परान्तक चोल सिंहासनारूढ हुआ ,परन्तु कृष्ण दिवतीय अपनी पुत्री के पुत्र को राजा बनाना चाहता था अत:उसने परान्तक चोल पर आक्रमण कर दिया लेकिन चोल नरेश परान्तक ने कृष्ण को पराजित कर दिया ।
कृष्ण द्वितीय के शासन काल में राष्ट्र कूट राज्य की सीमायें यथावत रहीं , कृष्ण द्वितीय ने ९१४ ई० तक शासन किया ।