कृष्ण तृतीय के बाद उसके अनुज खोट्टिग को राष्ट्र कूट का सिंहासन मिला ।परन्तु कृष्ण तृतीय की मृत्यु के बाद उसकी अधीनता स्वीकार करने वाले राज्य सिर उठाने लगे , मालवा का परमार शासक सीयक द्वितीय ने नर्मदा को पार कर राष्ट्र कूट राज्य पर हमला कर दिया ,राष्ट्र कूट सैनिकों ने न सिर्फ़ परमारों को पराजित किया उनके सेनापति की हत्या भी कर दी ।
परन्तु कुछ समय पश्चात परमार नरेश ने एक बड़ी सेना के साथ राष्ट्र कूट की राजधानी मान्यखेट पर आक्रमण किया और राज्य में भारी लूट पाट भी की ।
राष्ट्र कूट के शक्तिशाली सामन्त गंग शासक मारसिह ने परमारों को पराजित किया और अपने राजा के राज्य को सुरक्षित किया लेकिन खोट्टिग अपनी पराजय और राजधानी की हालात से बहुत व्यथित था । कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई ।
खोट्टिग की मृत्यु के पश्चात कर्क द्वितीय सिंहासन पर आसीन हुआ । परन्तु अपने क्रूर स्वभाव के कारण वह अपने ही लोगों के बीच ही अप्रिय होता गया इसका लाभ उसकेसामन्त तैलप द्वितीय ने उठाया वह एक कुशल सेनानायक था और प्रशासन में भी निपुण था। कर्क द्वितीय का सामन्त तैलप द्वितीय एक सामन्त होते हुये भी राष्ट्र कूट मन्त्रियों और सेनानायकों के बीच लोकप्रिय होता गया ।वह एक कुशल प्रशासक था अपनी महत्त्वकांक्षा के चलते उसने मौक़ा पाकर कर्क द्वितीय पर आक्रमण कर दिया और उसे पराजित कर राष्ट्र कूट राज्य पर अधिकार कर लिया , अपनी कूटनीतिज्ञ दक्षता से वह राष्ट्र कूट राज्य का राजा बन गया । इस प्रकार राष्ट्र कूट साम्राज्य का अंत हो गया ।