चोलराजा राजाधिराज ने चालुक्यों को दबाने का काम अपने युवराज पुत्र राजेन्द्र द्वितीय को दिया । राजेन्द्र द्वितीय ने विक्रमादित्य षष्ठ के कई पराक्रमी सेनापतियों की हत्यायें की और चालुक्य सेना से उनके हाथी ,घोड़े और शस्त्र लूट लिये तथा भव्य भवनों को नष्ट कर दिया
सोमेश्वर प्रथम के संधि प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया । चोलों ने चालुक्यों की राजधानी कल्याणी परभी विजय प्राप्त की ।तंजोर के दारासुरम् मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित द्वार पाल की मूर्ति को राजेन्द्र द्वितीय ने अपनी राजधानी में लाकर स्थापित किया ।
चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम ने अपने पुत्र विक्रमादित्य और परमार राजा जयसिंह को चोलों के अधिकृत प्रदेश गंगवाडी पर आक्रमण करने भेजा परन्तु चोल नरेश राजेन्द्र द्वितीय ने अपने पुत्र वीर राजेन्द्र को विशाल सेना के साथ भेजा उसने वीरता पूर्वक सबको हरा कर भगा दिया ।
वेंगनाडु युद्ध में पराजित सेनानायकों के साथ किये गये अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से सोमेश्वर ने कुंडलसंगम के मैदान में पु न: चोलों को चुनौती दी ।चोल राजा तुरन्त आ गया ,चालुक्य सेनायें भी आ गयी परन्तु सोमेश्वर प्रथम जो संभवत बीमार था युद्ध क्षेत्र में नहीं पहुँचा । चोल राजा ने चालुक्यों को पराजित कर तुंग भद्रा नदी के किनारे विजय स्तंभ स्थापित कराया ।
कुछ समय बाद अपनी बीमारी से त्रस्त होकर और अपनी पराजय से व्यथित सोमेश्वर ने १०६८ में तुंग भद्रा नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली ।
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Thank you so much 😊
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