जिस समय विक्रमादित्य षष्ठ चालुक्य राजगद्दी पर विराजमान हुआ उस समय उसका साला अधि राजेन्द्र चोल सिंहासन पर आसीन था ।
परन्तु चोलों ने विद्रोह करके अधि राजेन्द्र को राजगद्दी से उतार दिया और उसकी हत्या भी कर दी ।इस विद्रोह का मुख्य सरदार कुलोत्तुंग प्रथम था ,उसने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया ।
कुलोत्तुंग ने अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में विक्रम चोल को युवराज घोषित करने के लिये वेंगी राज्य से चोल राज्य बुलाया ,जिसका लाभ उठा कर विक्रमादित्य षष्ठ ने वेंगी राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपने सेनानायक अनंतपाल को वहाँ का शासक नियुक्त किया उसने गंगवाडी और कोलार क्षेत्र को भी जीतकर अपने राज्य में मिला लिया ।
गंगवाडी पर उस समय होयसल नरेश विष्णु वर्धन का अधिकार था ,विक्रमादित्य षष्ठ ने विष्णु वर्धन को हराया और कदम्बों तथा पाण्ड्यों को भी पराजित किया । विक्रमादित्य ने लंका में भी अपने दूत भेजकर मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये ।
उसका शासन लंबी अवधि तक रहा ।उसने अपने राज्य में विद्या और धर्म के प्रसार के लिये पाँच सौ तमिल ब्राह्मणों को बसाया और उनके भरण पोषण की भी व्यवस्था की ।
विल्हण कृत ‘विक्रमांक देव चरितम’ विक्रमादित्य के चरित्र पर लिखी गयी है ,इसमें १८ सर्ग हैं।
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