मार वरमन राजसिंह के उपरान्त उसका पुत्र जटिल परान्तक नेडुंजडैयन (वरगुण प्रथम ) पांड्य राजसिंहासन पर आसीन हुआ ।
वह पांड्य राज्य का शक्तिशाली और महान राजा हुआ ।वेलाविक्कुडि अभिलेखानुसार उसने पेण्णागडम्(तंजौर के क़रीब) के युद्ध में पल्लवराज नन्दिवरमन द्वितीय उनका साथ देने वाले नाट्टक्कुरूम्ब के राजा आयवेल की सेनाओं को पराजित किया । तगदूर(धर्मपुरी )के राजा अडिगैमान को युद्ध में पराजित किया तथा उसे बंदी बना कर रखा ।अंतत: तगदूर शासक ने उसकी अधीनता स्वीकार की ।वरगुण का विजयी अभियान जारी रहा ,उसने बेड़ाद राज्य परअधिकार कर लिया और कावेरी नदी के दक्षिण तट पर स्थित पेन्नागडम के युद्ध में उसने पल्लव नरेश नन्दि वरमन को हरा दिया ।उसकी शक्ति को रोकने के लिये पल्लव नरेश ने कोंगू केरल तथा अडिगैमान के साथ मिलकर वरगुण प्रथम पर आक्रमण किया ,पांड्य नृपति वरगुण प्रथम ने इन्हें पराजित किया औरपललव राज्य की सीमा में प्रवेश किया पल्लव शासित तोन्दईनाडु में पेन्नार नदी के अरशूर मैदान में अपना सैन्य शिविर स्थापित किया ।वरगुण प्रथम का शासन तिरुचिरापल्ली के आगे तंजोर ,सलेम, कोयम्बटूर प्रदेशों परऔर इसके संपूर्ण दक्षिणी भाग परहो गया ।
वरगुण प्रथम ने दक्षिण ट्रावणकोर स्थित वेणाड राज्य के सुदृढ़ क़िला बंद बंदरगाह विलिनम पर आक्रमण करके उस राज्य पर अपना शासन स्थापित किया ।
वरगुण प्रथम अपने समय का तमिल देश का प्रभावशाली और पराक्रमी राजा बन गया ।अपने शत्रुओं को पराजित करने के कारण उसने परान्तक उपाधि धारण की । वह विद्वानों कासंरक्षक और विद्यानुरागी था । वह पांड्य वंश का महान शासक था।