जटिल परान्तक नेडुंजडैयन (वरगुण प्रथम ) की मृत्यु के बाद उसका पुत्र श्रीमारश्रीवल्लभ राजसिंहासन पर बैठा ।वह अपने पिता की तरह महा पराक्रमी था उसे दक्षिण भारत का प्रजा पालक शासक कहा जाता है श्रीमारवल्लभ ने विलिनन्,कुन्नूर तथा सिंगलम् पर विजय प्राप्त की ।
सिहंली बौद्ध महाकाव्य महावंश के अनुसार श्रीलंका के शासक सेन प्रथम को पांड्य सेना ने पराजित किया और काफ़ी धन प्राप्त किया परन्तु दोनों के बीच सन्धि हो जाने के बाद पांड्य राजा ने सेन प्रथम को उसका राज्य वापस कर दिया ।
पल्लव राज दन्ति वरमन का पुत्र नन्दि वरमन तृतीय शक्तिशाली होने के साथ कूटनीतिज्ञ भी था ।उसने गंग,चोल और राष्ट्र कूट को मिलाकर पांड्य राजा श्रीमारवल्लभ पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में पांड्य पराजित हुये ,पल्लवों ने पांड्य राज्य के वेंगई नदी के तट तक का क्षेत्र जीत लिया ।
परन्तु पांड्य राजा ने पुन: अपनी शक्ति एकत्र की और पल्लव तथा उनके सहयोगी राजाओं को पराजित करअपनी हार का हिसाब बराबर किया ।
श्रीलंका नरेश सेन द्वितीय ने पल्लवों के साथ मिलकर श्रीमारवल्लभ की राजधानी मदुरै को घेर लिया और उनका साथ दिया पांड्य राजकुमार माया पांड्य ने जो स्वयं को राजगद्दी का हक़दार मानता था ।
इस युद्ध में भयंकर विनाश हुआ ,इस आक्रमण के परिणाम स्वरूप पांड्य नरेश श्रीमारवल्लभ युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ और उसकी मृत्यु हो गयी ।
तब सिंहली सेनानायक ने उसके पुत्र वरगुण द्वितीय को राजसिंहासन पर बैठाया ।
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Thanks 😊😊😊
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