राजसिंह द्वितीय कुछ समय तक अपने ननिहाल में रहने के बाद अपने राज्य की पुन: प्राप्ति के लिये प्रयासरत हो गया और अपनी शक्ति को एकत्र कर चोलो से मुक़ाबलाकरने को तैयार हो गया ।परन्तु चोल नरेश ने पांड्य शक्ति को पुन: पराजित कर दिया ।
पराजित होने के बाद भी मार वरमन राजसिंह द्वितीय बार -बार अपने राज्य को स्वतन्त्र कराने का प्रयास करता रहा ,उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र वीरपांडय ने भी राज्य की स्वतन्त्रता के लिये प्रयास जारी रखा ,उसके शासनकाल में चोल राज्य का शासन एक दुर्बल शासक गंडरादित्य चोल के पास था जिसे वीरपांडय ने पराजित कर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली ।
गंडरादित्य की मृत्यु के बाद उसका भतीजा सुंदर चोल परान्तक द्वितीय राजा बना ।उसने वीरपांडय की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिये पांड्य राज्य पर आक्रमण किया ।वीरपांडय की सहायताश्रीलंका नरेश महेन्द्र चतुर्थ ने भी की परन्तु चोल नरेश ने उन्हें दो बार पराजित किया ।
वीरपांडय की मृत्यु ९६६ ई० में हो गयी और लगभग तीन शताब्दी तक पांड्य राज्य चोलो के आधिपत्य में रहा।
१०७०-११२० ई० में कुलोत्तुंग प्रथम के समय में पांड्य राजा जटावरमनश्रीवल्लभ ने पांड्य राज्य को स्वतंत्र रखने में कुछ वर्षों तक सफल रहा परन्तु कुलोत्तुंग ने उसे मार कर पांड्य राज्य पर अधिकार कर लिया ।
उसके पश्चात कुछ समय तक पांड्य राज्य उत्तराधिकार के कारण गृहयुद्ध में फँसा रहा ,कुलोत्तुंग तृतीय ने पांड्य राज्य के दो उत्तराधिकारियों वीरपांडय और विक्रम पांड्य के बीच के झगड़े को ख़त्म कर विक्रम पांड्य को मदुरा का शासक बनाया ।
विक्रम पांड्य के उत्तराधिकारी जटा वरमन कुलशेखर ने चोल सत्ता की अवज्ञा कर ,चोलों के विरूद्ध कुछ सफलतायें प्राप्त की ,उसके पुत्र मारवरमन सुन्दर पांड्य ने उदयपुर और तंजौर पर क़ब्ज़ा कर लिया और चोलो को भी अपने आधीन कर लिया । परन्तु चोलों ने
होयसलों की सहायता से पुन: अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली ।
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Thank you so much 😊
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