राजराज प्रथम के शासनकाल के एक अभिलेख के अनुसार नोलम्बों और गंगों के विरुद्ध भी उसने विजय प्राप्त की थी ।
चालुक्य शासक सत्याश्रय जो राजराज का समकालीन था,चोलों का प्रबल शत्रु था ।उसकी शह पर वेंगी शासक दार्नाणव की हत्या तेलुगु जटाचोडभीम ,जो दार्नाणव का संबंधी भी था ,ने कर दी और सिहांसन हथिया लिया ।
दार्नाणव के पुत्रों ने राजराज प्रथमसे सहायता की याचना की ,राजराज ने सहायता कावचन दिया और अपनी पुत्री का विवाह छोटे राजकुमार से कर दिया तथा बड़े राजकुमार शक्ति वरमन को सिहांसन पर बैठाने का वचन दिया ।
चोल राजा नेजटाचोडभीम को पराजित किया और वेंगी के सिहांसन पर शक्ति वर्मन को शासक बना दिया ,चोल राज्य के प्रभुत्व में शक्ति वर्मन शासन करने लगा ।चालुक्य नरेश सत्याश्रय को चोलराज्य का विस्तार पसन्द नहीं था ,उसने 1006 में वेंगी पर आक्रमण कर दिया और धान्यकटक तथा वनमंडल के किलों को धूल धूसरित किया ।
तब राजराज प्रथम ने अपने पुत्र राजेन्द्र को एक शक्तिशाली सेना का प्रधान बना कर चालुक्यों पर आक्रमण करने भेजा ।
राजेन्द्र चोल ने सान्तलिगे,वनवासी, कादम्बलिगे,कोगली प्रदेशों को जीतकर बीजापुर जिले के दोनूर में अपना सैन्य शिविर स्थापित किया।
चालुक्य अभिलेख के अनुसार राजेन्द्र चोल ने पूरे देश को बुरी तरह लूटा और स्त्रियों और बच्चों तक को मौत के घाट उतारा, और मान्यखेट में भी लूटपाट की ।
सत्याश्रय को इस कारण अपनी सेना वेंगी से हटानी पड़ी, वह बड़ी कठिनाई से अपने देश को चोल सेना से मुक्त करवा सका और चोल सेना बहुत सारे लूट के माल के साथ तुंगभद्रा नदी के पीछे रह गई।
इसके बाद राजराज प्रथम ने कलिंग राज्य पर आक्रमण उसे भी अपने राज्य में मिला लिया।
राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर तो अपना आधिपत्य पहले ही कर लिया था ,अब उसने अपनी शक्तिशाली जहाजी सेना के साथ बंगाल की खाड़ी को पार करके दक्षिणी पूर्व एशिया में श्रीविजय, कटाह तथा मलाया द्बीपों पर भी अपना अधिकार कर लिया और अपने विशाल चोल साम्राज्य में मिला लिया।
इस प्रकार भारत का पूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ व्यापार और वाणिज्य सम्पर्क पूरी तरह से विकसित हो गया।
चोल साम्राज्य को राजराज प्रथम ने विस्तृत, वैभवशाली और शक्तिशाली बना दिया ।
राजराज ने तंजौर का वृहदीश्वर मंदिर का निर्माण कराया था ,जो कि विश्व प्रसिद्ध है ।