राजेंद्र प्रथम के उपरांत युवराज राजाधिराज चोल 1044 में चोल सिहांसन पर विराजमान हुआ।उसने सिहांसन पर बैठने केबाद चालुक्यों के विरुद्ध अभियान शुरु किया और कृष्णा नदी के किनारे धान्यकटक में चालुक्यों को पराजित किया।
1046 में राजाधिराज ने कल्याणी राज्य पर आक्रमण कर कल्याणी पर अधिकार कर लिया, चोल सेनाओं ने चालुक्यों के सेनापतियों और सरदारों क़ो पकड़ लिया तथा कम्पिलनगर में चालुक्यों के राजमहल को नष्ट कर दिया।राजाधिराज ने शत्रु की राजधानी में अपना वीराभिषेक कराया और विजयराजेन्द्र की उपाधि ग्रहण की।
1050 में चालुक्य नरेश सोमेश्वर अपने राज्य से चोल सेना को हटाने में सफल हुआ ,अब उसने वेंगी राज्य पर आक्रमण कर वेंगी नरेश को विवश किया कि वह सोमेश्वर की अधीनता स्वीकार करे।
राजाधिराज ने अपने छोटे भाई राजेन्द्र द्बितीय को युवराज बना दिया था ।राजाधिराज ने राजेंद्र द्बितीय को सोमेश्वर पर आक्रमण करने भेजा,युवराज राजेंद्र द्बितीय ने चालुक्य शासित रटठमंडलम् प्रदेश को जीतकर अनेक चालुक्य सेनापतियों को मौत के घाट उतारा और उन्हें भागने पर विवश कर दिया।
सोमेश्वर एक बार फिर चोल सेना का सामना करने आगे बढ़ा, कोल्हापुर के पास कोप्पम में दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ,राजाधिराज युद्ध स्थल पर शत्रु सेनाओं से घिर गया और बुरी तरह घायल हुआ तथा मृत्यु को प्राप्त हुआ ,परन्तु इसी बीच राजेंद्र द्वितीय अपनी सेना के साथ युद्ध स्थल पर पहुंच गया और अपने पराक्रम से युद्ध में विजयी हुआ,पराजित चालुक्य सेना समर भूमि से भाग खड़ी हुई।
चोलों के हाथ बहुत सा लूट का माल ,हाथी ,घोड़े, ऊंट तथा कुछ स्त्रियां जो राजपरिवार की थी,लगा ।
राजेंद्र द्बितीय ने युद्ध स्थल में ही अपना राज्याभिषेक करायाऔर विपुल सम्पत्ति के साथ अपनी राजधानी वापस लौट आया।
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