कुलोत्तुंग प्रथम ने अब चोल साम्राज्य को सुदृढ़ करना शुरु किया। कुलोत्तुंग ने विक्रमादित्य षष्ठ के विरुद्ध दक्षिणी चालुक्य राज्य पर आक्रमण कर दिया और उसे पराजित कर गंगवाड़ी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
उसने श्रीलंका के साथ मैत्री संबंध बनाने के लिये अपनी पुत्री का विवाह श्रीलंका के राजकुमार के साथ कर दिया।
कुलोत्तुंग ने अपने पुत्र को वेंगी का शासक बना दिया था ,उसे युवराज बनाने के लिये चोल राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम् बुलाया ।उसके जाते ही वेंगी में गड़बड़ शुरू हो गई, चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ ने आक्रमण कर वेंगी राज्य के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया।उधर होयसल नरेश विष्णु वरधन ने चोल राज्य पर आक्रमण कर चोल शासित गंगवाड़ी और नोलम्बबाड़ी पर अधिकार कर लिया।काकतीय शासक प्रोल ने भी चोल सत्ता से अपने को मुक्त कर कल्याणी के चालुक्यों की अधीनता स्वीकार कर ली।
1120 में विक्रम चोल चोल सिहासन पर बैठा ,उसने सबसे पहले कल्याणी के शासक सोमेश्वर तृतीय को हटाकर वेंगी राज्य पर पुनः चोल सत्ता के अधीन कर लिया।होयसलों को पराजित कर गंगवाड़ी के कोलार क्षेत्र को चोल साम्राज्य में मिला लिया।
1135 में विक्रम चोल की मृत्यु के बाद कुलोत्तुंग द्वितीय ने राजगद्दी संभाली ,उसका शासन काल शांतिपूर्ण रहा ।
1150 में कुलोतुंग का पुत्र राजराज द्वितीय राजा बना, राजराज के शासनकाल मेंपांडय राजगद्दी के लियेपांड्य राजकुमारों में संघर्ष चल रहा था।
राजकुमार कुलशेखर पांड्य ने अपने प्रतिद्वंद्वी राजकुमार पराक्रम पांड्य की हत्या कर दी। श्रीलंका द्वारा पांड्य राज्य में किए जा रहे हस्तक्षेप के विरुद्ध कुलशेखर पांड्य ने चोलराज राजराज द्वितीय की सहायता मांगी, राजराज द्वितीय ने कुलशेखर की सहायता कीऔर श्री लंका की सेना को हराकर कुलशेखर को मदुरा के पांड्य राजसिंहासन पर आसीन कराया।
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