राजराज द्वितीय के बाद चोल सिहांसन पर राजाधिराज द्वितीय आसीन हुआ, उसके समय तक कलचुरि नरेश अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था।उसने चोलों को पराजित कर चोल अधिकृत आन्ध्रप्रदेश के ज्यादातर भू भाग अपने राज्य में मिला लिया।
1179 में जबकुलोत्तुंग तृतीय सिहांसन पर बैठा तो उसने कोंगू प्रदेश में हुए विद्रोह को खत्म किया ।कुलोतुंग तृतीय ने होयसल ,बाण,चेर गंग आदि राज्यों को जीतकर अपनी अधीनता स्वीकार करवाई, पांड्य देश काराजा विक्रम पांड्य कुलोतुंग की अवज्ञा कर उसका कोपभाजन बना ।कुलोतुंग ने पांड्य राज्य पर आक्रमण कर राजधानी को लूट लिया और राजाओं के राज्याभिषेक भवन को तहसनहस कर दिया।
कुलोतुंग तृतीय चोल राजवंश का अन्तिम महान शासक माना जा सकता है,अपने शासन काल तक उसने चोल राजवंश की गरिमा को सुरक्षित रखा।
कुलोतुंग का उत्तराधिकारी राजराज तृतीय हुआ ।शासक के रूप में वो असफल रहा ,उसके शासन काल में विशाल चोल साम्राज्य एक छोटा सा राज्य मात्र रह गया।पांड्य राजाओं से युद्ध के परिणाम स्वरूप राजराज तृतीय की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंची।
राजराज तृतीय के बाद राजेंद्र तृतीय चोल सिहांसन पर बैठा ,युवराज रहते हुए उसने होयसल,पांड्य और काकतीय राजाओं को पराजित किया था ।उसके राजा बनने के बाद होयसल और पांडय राजाओं ने राजेंद्र तृतीय को पराजित किया,फलतः राजेंद्र तृतीय को पांडयों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
इस प्रकार विशाल चोल साम्राज्य के स्थान पर बचा छोटा सा चोल शासित प्रदेश तमिलनाडु पर भी पांड्य राजाओं का अधिकार हो गया।
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